Wednesday, January 29, 2020

33] Competition, A bloody game

इस कहानी में तलवार को गुनहगारों के रक्त से रंगा जाता है। यह वह गुनहगार होते हैं जो अपनी मोहब्बत को पाने के आड़े आते हैं। एक समय ऐसा आता है जब मोहब्बत की बाजू शत्रू काट देते हैं। फिर इसी दहशत में  कई इंसान काट कर अलग किये जाते हैं।
इस स्क्रिप्ट का प्राइस- 3 करोड़ रुपये है।
यह कहानी सिर्फ आमिर खान सर के लिए लिखी गई है।

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Coming Soon

Tuesday, January 28, 2020

32] Jakham, Story of a family



यह लव स्टोरी है। इस स्टोरी में 2 हीरो होते हैं। इन दोनों की किसमत में किसी का प्यार न के बराबर होता है। जिंदगी ऐसे जख्म देती है कि प्यार से नफरत सी होने लगती है। आखिर तक इन्हें प्यार नसीब नहीं होता है।
Tiger Shroff & Varun Dhawan
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Keval 98 Lakh Rs.ki
Meri High Budget
Bollywood Movie Script
Bahut Jald Puri hone vali hai.
Script ke liye sampark karen
My WhattsApp 9805626001 


Wednesday, January 22, 2020

31] Mona Darling (Comedy & Action Script)

My Next Movie Script ....
Salmaan Khaan
Shardha Kapoor in Tripple Role 1st time

Script Prize- 80 Lakh Rs.
Coming Soon


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Very Very Soon......
Contact No. 9805626001
Movies Scripts Writer

Friday, January 17, 2020

30] सांसों का सफर, प्यार की महान गाथा { एक सीरियल }


यह मैं पहला सीरियल लिख रहा हूँ। इसके मैं 1500 एपिसोड लिखूंगा। आज मैं आप सब के लिए 1st एपिसोड लिख कर डाल रहा हूँ। आप अपने विचार कमेंट में जरुर बताएं ताकि आपको मैं रोमांच की अलग ही दुनिया में अपने साथ ले जा सकूं।

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                                                                सांसो का सफर
साँसों का सफ़र, यह कहानी एक सच्चे प्यार को दर्शाने की दास्तान है। सच्चे प्यार की इस रोमांच से भरी दास्तान में आप हर हफ्ते सांतवे दिन, मेरे साथ खोने को तैयार हो जायें। प्यार की ऐसी तीन कहानियां, जो आपको अपना बजूद मेहसूस कराने पर मजबूर कर देंगी। मायावी दुनिया, साधारण जिंदगी की दास्तां और राजाओं के नवयुग का रहस्यमय रोमांच.....
                    एपिसोड-एक
(चारों ओर सुन्दर-2 खेत थे। खेतों में गेहूं की फसल हवा के हलके-हलके झोंको के साथ लहरा रही थी। खेतों के बीचों-बीच 50 फीट ऊंची सूखी पहाड़ी थी। आधी पहाड़ी से लगता एक मिटटी का टीला था। टीले पर 70 साल का बूढ़ा हथौड़ा-छैनी से पहाड़ी पर कुछ नकाशी करने की बार-2 कोशिश कर रहा था। लेकिन दोनों पैर धीरे-2 लड़खड़ा रहे थे। नीचे खेत में खड़ा 5 साल का पोता, अपने पिता की फटी हुई बनियान डाले, हाथ की छांव आंखो को किये अपने दादू को देख रहा था।)

गुगलू-  गरीब दा..... मैं ऊपर जाऊं क्या।

गरीब दास-  हाथों से का इशारा करता है।

गुगलू-   गरीब दास, नीचे खड़े-खड़े मुझे कुछ दिखाई नहीं दे रहा है, तुम... तुम कर क्या रहे हो। ( दोनों पैरों के बल बैठ कर मासूमियत के साथ देखने लगता है। )

गरीब दास-  ( हथौड़ा-छैनी मारते हुये हांफती आवाज में- ) दोपहर में टुकड़ा लेकर आया पानी लेकर आया, एक तो सुबह से जंगल-पानी नहीं गया हूं और मेरा सर खाने तुझे भेज दिया।

गुगलू-  गरीब दास, मुझे मालूम था तू मुझे ऊपर नहीं चढ़ने देगा, तेरी रोटी पर मैं जंगल पानी कर के ही आया हूं। जा देख ले उपर, खेत में है।
गरीब दास- ( सुनकर हथौड़ा-छैनी हाथ से छूट जाते हैं आग-बबूला हो उठता है। ) तेरी गंदी मां ने तुझे ये सोबत सिखाई है। ठहर रु..., मैं बताता हूं तुझे।
गुगलू-   दादू तू जब तक नीचे पहुंचेगा ..., मैं भाग कर घर पहुंच जाऊंगा।
( नीचे झुक कर नन्हे-नन्हे हाथों से बनियान उठाता है, एक हाथ से पेट पर कस कर पकड़ लेता है। नीचे से नंगा होता है। दादू को मासूमियत से नीचे आता देखने लगता है।
गुगलू-  पहले मेरी तरह सु-सू करना सीख ऐसे.......... खड़ा होकर। तू तो पुरुष जाति पर भी कलंक है गरीब दास....... 
गरीब दास-  हरामजादे यहीं रुक, भागना नहीं।
गुगलू-  ( मासूमियत से हंसने लगता है। ) अरे बुडढ़े तेरी टांग टूट जायेगी धीरे-धीरे नीचे उतर। मैं अकेला तुझे फिर, कैसे अपने कंधे पर उठा कर ले जाउंगा। ( दादा को करीब आता देख डर जाता है, खेतों-खेत भाग जाता है वहां से....)


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( कच्ची मिट्टी का मकान था, एक ऊआन-बौड़ ही थे। दीये की लौ में रात में गरीबदास की बीबी, बेटा और पोता प्याज और नमक के साथ सूखी रोटी खा रहे थे। गरीबदास की बहू घुंघट किये चूल्हे में रोटी सेंक रही थी। )
चरण दास-  पिता जी, जंगल-पानी तक तो ठीक है लेकिन, ऐसे खेतों में मत जाया करो। उम्र हो चुकी है अब आपकी, अब जवान नहीं हैं आप।
गरीब दास-  ( जोर से झापड़ उसकी गर्दन पर मारता है- ) रोटी पर..., तू इस नालायक को मत समझा। जंगल पानी सही जगह पर किया जाये तो उसका भी एक अर्थ है वरना व्यर्थ है।
चरण दास-  आप अर्थ ढूंढो, करो... दिल करे तो फिर अर्थ ढूंढो... लेकिन, ढूंढ कर जल्द घर तो जाओ। पूरा दिन आप खेतों में क्या करते रहते हो। पिता जी, अब मेरी 1 रुपया धयाड़ी हो गयी है। पहले हम एक दिन छोड़ कर खाना खाते थे।
गरीब दास-  ( निवाला मुंह में डालता है- ) मैं घर पर नहीं बैठ सकता। खाली और निकम्मा बैठना मुझे पसंद नहीं है।
धरमोड़ी-  जी, आप बेटे की बात क्यों नहीं मान लेते...., अब तो हम दिन में दो बार भर पेट खाना खाते हैं। गुजरा वक्त कुछ और था, ( प्याज को जोर से दांतों से काटती है और सूखा निवाला मुंह में डालती है ) भूल गये होंगे आप, हफ्ते हमने पानी पीकर गुजारे हैं। रोटी का टुकड़ा मिला भी तो पानी में डूबो-डूबो कर खाना पड़ा। अब हमारा चरणू हफ्ते में 2 बार प्याज लाता है।
गरीब दास-  मेरे काम को अंग्रेज रोक पाये तो तुम दोनों होते कौन हो.......
( थाली में हाथ धोने लगता है। थाली दूसरी तरफ कर, चूल्हे में सेंकने लग पड़ता है। )
( पाँच महीने बाद तेज़ बारिश हो रही थी, तेज़ बारिश में हवा से पेड़ यहां-वहां झूल रहे थे। आंधी-तूफान इतने जोरों पर था कि बड़े-बड़े पेड़, टहनियों की तरह लहरा रहे थे। गेंहू की फसल खेतों में बिछ गई थी। बारिश ऐसी प्रतीत हो रही थी मानों भगवान अपने कहर की चरम सीमा पर हो। ...गरीबदास दूसरी जगह पर चिकनी मिटटी की पहाड़ी से फिसल जाता है, अम्मा-अम्मा चिल्लाता हुआ फिसलता जाता है। फिसलता-फिसलता जाकर नीचे गहरे दल-दल में फंस जाता है। धीरे-धीरे नीचे धंसने लगता है।.... )
गरीबदास-  बेड़ा गरक हो तुम्हारा हरामजादे-बेड़ा गरक हो तुम्हारा, सुबह-सुबह ही टोक दिया था।
( छाती तक धंस जाता है और सुबह की याद आने लगती है गुस्से से- )
गुगलू-  गरीबदास, बाहर तेज़ बारिश लगी है मत जा।
गरीबदास-  ( पूरे जोर से चिललाता है- ) चुप.... 
गुगलू- (मासूमियत से- ) दादू, बारिश ऐसी है कि तू उड़ जायेगा....
गरीबदास-  ( गुस्से से धोती बांधते हुए- ) अच्छे काम के लिये जा रहा हूँ और हरामी टोक रहा है।
गुगलू-  ( मासूमियत से- ) दादू तुझसे तो, सीधा चला भी जाता, .....ऐसा हो तू बाहर जाये और तेरी हडिडयां कड़क करके ही टूट जायें।
गरीबदास-  गुस्से से उसकी तरफ देखता-देखता, बाण के मंजे (चारपाई) के नीचे से बांस की छड़ी निकालने लगता है।
गुगलू- ( डर के मारे पौड़ीयां चढ़, उपर भाग जाता है। )
( गरीबदास गुस्से में.... जैसे-तैसे भरे दल-दल से बाहर निकलता है। तेज़ बारिश के कारण बाहर निकलता ही, बिलकुल साफ हो जाता है। अपने खेतों की सूखी पहाड़ी पर पहुँच जाता है। ( गरीबदास ने हथौड़े और छैनी से काट-काट कर 20 फीट लंबी और 8 फीट चौड़ी सुरंग बना दी थी। ) अंदर बड़े पत्थर को पूरी ताकत से हटाने लगता है, उसके नीचे छुपाये हथौड़ा-छैनी निकाल कर खड़ा होता है कि गुगलू सिर पर 2 बोरियां औढ़े और सिर्फ पिता की बनियान डाले, भीगता हुआ सुरंग के अंदर पहुंच जाता है।
गरीबदास- ( गुस्से से....) हरामजादे तेरी वजह से मेरी क्या हालत हुई है तुझे पता है।
गुगलू-  इतने मत फड़फड़ाओ कि, उड़ ही जाना। बारिश बहुत है..., तुम्हारे लिये बोरी लाया हूँ। ( हाथ आगे करता है बोरी के साथ )
गरीबदास- ( उसके सिर से लेकर पांव तक धीरे-धीरे नजर मारता है, गुगलू से पानी नीचे गिर रहा था, पूरा भीग चुका था... थोड़ी देर अपना हादसा याद आता है- ) आंखो में आंसू जाते हैं, हथौड़ा-छैनी हाथ से छूट जाते हैं। अपने हाथ धोती से पोंछकर दोनों हाथों से गुगलू को अपने पास बुलाता है। गुगलू डर जाता है, ........फिर भाग कर, दादू के सीने से चिपक जाता है। गरीबदास की आंखों में आंसू जाते हैं। कस कर बांहों में भर लेता है। .......थोड़ी देर बाद, सीने से अलग कर कहता है-
गरीबदास-  इतनी बारिश में तुम कहां गए।
गुगलू-  अरे मैं नहीं आता तो तुम भीग जाते। ध्यान रखना पड़ता है मुझे सबका।
गरीबदास-  ( जोर से हंस पड़ता है....... ) वो तो है।
गुगलू-  एक बात बताओ, तुम यहां करते क्या हो रोज-रोज आकर। ( अपने नन्हे-नन्हे हाथों को चारों तरफ फैलाता-फैलाता कहता है- ) यह तुमने अपने लिये नया घर बना लिया।
गरीबदास-  अभी तुम छोटे हो, समझ पाओगे।
गुगलू- ( पैरों के बल बैठकर चेहरे को हाथों पर टिकाता है- ) फिर भी..... बता दो, तुमसे तो काफी समझदार हू मैं।
गरीबदास- ( पत्थर के ऊपर बैठ जाता है- ) मेरे दादू, झांसी के वीर सेनापति थे। सेनापति ऐसे, जिन्होंने कभी हार नहीं मानी। एक-एक भाले के वार से वो 7-7 अंग्रेजों  को युद्ध में अकेले मार देते थे। भाला उनका शत्रु को मारने का, पसंदिदा हथियार हमेशा होता था। फिर कुछ समय बाद, एक समय ऐसा आया जब अंग्रेजों को दादू को अपनी तरफ करने के लिए, हवन करने पड़े... लेकिन वो मेरी तरह ढीठ और अड़ीमूड़ थे, एक बार जो अड़े, अड़े के अड़े रह गए। इतना अड़े की उनकी पीठ ही अकड़ कर अड़ गई...., कई दिन वो पीठ अकड़ा कर ही चलते रहे- ऐसे, ( गुगलू उत्सुकता भरी मासूमियत से सब सुन रहा था। ) उनकी पीठ सीधी हो जानी थी, लेकिन उस वक्त कोई पठा पटता नहीं था। एक गंदी बात बताऊं, अपने आप वो सोने की थाली में अनेकों पकवान खाते थे और हमें झोंक गए गरीबी की अंधी भूख में... अगर उस वक्त कुछ कमा कर रखते तो आज हम भी अच्छा-अच्छा भोजन करते। वो कहते हैं , बुड्ढों का दिमाग घुटनों के बजाय पैर के नाखुन में, बस यही हिसाब था मेरे बुड्ढे के बुड्ढे का....


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( कहानी सुनाने लगते हैं- )

12 अंग्रेजी सिपाहियों और बड़े-बड़े बक्सों के साथ 2 अंग्रेजी ऑफिसर, सेनापति वैभव सिंह के विशाल कक्ष में, मंत्री उदय भान के साथ आते हैं।

वैभव सिंह- ( हाथ जोड़ खड़े हो जाते हैं- ) पड़ोसी राज्य मंत्री जी आप, आपने आने का कष्ट क्यों किया, संदेशा भिजवा दिया होता, मैं आपकी सेवा में खुद जाता। ( पीछे नजर मारता है ) ये सब क्या है..... ?

उदय भान- ( सिपाहियों से कहता है, बक्से नीचे रख दो ) यह सब आपके सम्मान में आए हैं

वैभव सिंह-  आप सर्वप्रथम सिंहासन ग्रहण करें, आराम से हम वार्तालाप कर सकते हैं। ( 2 बड़े अंग्रेजी ऑफिसर और उदय भान सिंहासन ग्रहण कर लेते हैं। )

उदय भान-  आपकी बहादुरी के किस्से हिंदुस्तान ही नहीं अंग्रेजी मुल्क में भी पहुंच चुके हैं। आपकी बहादुरी से आप जरनल रोनाल्डो डिक बहुत ही प्रभावित हुए हैं। आप, आपकी शान में 50 लाख स्वर्ण मुद्राएं लाए हैं, आप भेंट स्वरूप स्वीकार करें.. ( सिपाही एक झटके से सभी बक्से खोल देते हैं, स्वर्ण मुद्राओं की चमक से सारा कक्ष चुंधिया जाता है। )
वैभव सिंह-  मैं झांसी का सेनापति हूँ, इतनी स्वर्ण मुद्राएं तो मेरी आने वाली पुशते भी अगर झांसी को, अपने रक्त से नहलाएंगी..., तो भी कभी शायद एकत्रित नहीं कर पायेंगी। ...आप ये नहीं जानते, एक गलत शख्स को खरीदने चले आए हैं। मेरी सांसो का सफर झांसी से शुरु होकर झांसी पर ही खत्म होता है। ( सभी को सुनकर विश्वास नहीं होता कि वैभव सिंह बोल क्या रहा है। ) अगर ये अनमोल पेशकस आप कहीं और करते तो, मेरे भाले की नोक अब तक आप सबके सीनो के पार हो चुकी होती।
( सभी क्रोध में खड़े हो जाते हैं, उदय भान आग बबूला होकर भड़क उठता है-  )
उदयभान- तुम हमारा अपमान कर रहे हो, युद्ध में पता नहीं कब जान चली जायेगी, स्वर्ण मुद्राओं को ठोकर मत मारो.., अंग्रेजी हुकूमत के हथियारों के बारे में तुम तनिक भी नहीं जानते। सम्पूर्ण झांसी तबाह हो जायेगी।
वैभव सिंह- ( हाथ जोड़ खड़े हो जाते हैं- ) युद्ध और जंग के मैदान केवल बुलंद हौंसलों के साथ जीते जाते हैं। आपने जो भी करना होगा, जंग के मैदान में शौक से कर लीजिएगा। अब आप अपनी तरशीफ ले जा सकते हैं।
( सभी खामोशी के साथ, आग-बबूला होकर चले जाते हैं। )
एक दिन कच्चे रास्ते पर, वैभव सिंह घोड़े पर तूफान की गति से हाथ में भाला पकड़े जा रहा था। केवल घोड़े की नाल और रफतार की ही आवाज सुनाई दे रही थी। धूल सारे रास्ते को ढ़के जा रही थी। वैभव सिंह आगे बढ़ा जा रहा था........



पहले पार्ट का अंत,अगला पार्ट आप जल्द पढ़ेंगे...
हर एपिसोड,आपके कहने पर तैयार किया जायेगा
Manoj Kumar
Scripts writer
HamirPur,
Himachal Pradesh
Whattsapp 9805626001